Outdoor Education

लेखक

 

अमित अरोड़ा, WEMT, Outdoor Leadership & Wilderness Medicine Instructor 

यह लेख डा॰ दिपायन मित्रा, एम॰ बी॰ बी॰ एस॰  द्वारा रिवीयू किया गया है।

 

 

इस आर्टिकल में हम सर्कुलेटरी सिस्टम की बात करेंगे। हम जानेंगे कि सर्कुलेटरी सिस्टम में – 

 

  • कितने और कोन कोन से भाग होते हैं 
  • यह कैसे काम करता है 

  • इसमें क्या नुक़सान हो सकता है 

  • शॉक क्या होता है 

  • शॉक कितने प्रकार का होता है 

  • शॉक के चिन्ह व लक्षण 

  • उपचार में ध्यान रखने योग्य

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सर्कुलेटरी सिस्टम का मुख्य काम है शरीर में ऑक्सीजन आदान-प्रदान के लिए खून को संचालित रखना और एक समान प्रेशर बनाए रखना। सर्कुलेटरी सिस्टम के 3 भाग होते हैं।

 

  • रक्त – एक व्यस्क के शरीर में करीबन 5 से 6 लीटर खून होता है।रक्त में तरल पदार्थ पानी, पोषक तत्व, इलेक्ट्रोलाइट, सेल तथा मिश्रित गैस होते हैं।
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  • वेसल्स (रक्त कोशिकाएँ) – वेसल्स शरीर में रक्त पहूँचाने का काम करती हैं, सबसे पहले हम बात करेंगे आर्टरी की, यह वह वेसल है जो हृदय से रक्त लेकर के जाती है। यह ज्यादा प्रेशर में रक्त लेकर जाती है, इस कारण से यह लचीली होती हैं तथा अधिक दबाव सहन कर सकती हैं।
    • दूसरा वेन्स। जो रक्त ह्रदय तक वापस लेकर जाती हैं।
    • तीसरी है कैपिलरी। कैपिलरी एक छोटी पतली वेसल है जो कि खून को त्वचा के पास लेकर आती है जिससे गैस तथा पोषक तत्वों का आदान प्रदान हो सके।
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  • हृदय – यह इस सिस्टम का तीसरा अहम हिस्सा है। ह्रदय एक पंप की तरह काम करता है, जो कि शरीर से डीऑक्सीजनेटेड (आकसीजन रहित) और ऑक्सिजनेटेड (आकसीजन सहित) रक्त लेता है और शरीर के अलग-अलग भागों में भेजता है।
 

                                                                                          

इसकिमिया व इंफार्कशन

इसकिमिया शरीर में सैल के स्तर पर आकसीजन के आदान-प्रदान में बाधा आने के कारण होती है। यह शॉक से भिन्न है। शॉक में सर्कुलेटरी सिस्टम को क्षति पहुँचती है तथा इसकिमिया में शरीर के एक भाग पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। रक्त के बहाव में क्लॉट होना, शरीर में सूजन आना, शरीर में आई कुरूपता की वजह से इसकिमिया हो सकता है। इसके लक्षण में दर्द होना, प्रभावित भाग का सुन्न हो जाना, तथा ठीक से काम ना कर पाना देखा जाता है।

 

अधिक समय तक यदि इसकिमिया हो तो वह इंफार्कशन में बदल सकता है जिसका मतलब है टीशु का मरना। हमारे शरीर में कुछ ऐसे टीशु हैं जो की आकसीजन के अभाव के प्रति बहुत ही सेंसिटिव होते हैं। थोड़ी देर के लिए अगर उन्हें आकसीजन से वंचित रखा जाए तो उन्मे टीशु डेथ देखा जा सकता है। मनुष्य का दिमाग़ तथा हृदय इसके अच्छे उदाहरण है। यदि इन्हें 5 से 6 मिनट तक ऑक्सीजन नहीं मिला तो टीशु मरना शुरू हो जाएगा और वापस कभी जीवित नहीं हो पाएँगे।

 

हमारे शरीर में कुछ ऐसे अंग भी हैं जो कि लंबे समय तक ऑक्सीजन ना होने पर भी जीवित रह सकते हैं, हमारे हाथ, पैर इसका उदाहरण हैं। इसकिमिया अंदरूनी या बाहरी करणो से हो सकता है। अंदरूनी कारण जैसे शरीर में आई कुरूपता, क्लॉट आ जाना, या सूजन आना। इसके बाहरी कारक जैसे आवश्यकता से अधिक सख्त स्प्लिंट लगा देना या किसी ठोस सतह पर मरीज़ को लेटा कर लंबे समय के लिए बांध देना इसके कुछ उदाहरण हैं। 

 

शॉक क्याहै? 

मेडिकल भाषा में शॉक वह स्तिथि है जिसमें, सर्कुलेटरी या कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम में आई क्षति जिससे गैस (आकसीजन व कार्बन डायआक्सायड) के आदान प्रदान में बाधा होती है शॉक कहलाता है।यदि इसका उपचार ना किया जाए तो यह काफी घातक साबित हो सकता है, शॉक होने पर मरीज की मृत्यु कुछ मिनट, घंटो, व दिनों में हो सकती है।

 

                 
                                                                             

 

शॉक किन कारणों से होता है?

 

  1. शरीर में तरल पदार्थ की कमी आना शॉक का एक मुख्य कारण है। जिसमें दस्त लगना, डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी), काफी मात्रा में खून बह जाने के कारण शरीर में खून की मात्रा कम होना, काफी ज्यादा मात्रा में शरीर का जल जाना इत्यादि हैं।
  2. हृदय का ठीक रूप से काम ना कर पाने के कारण पर्याप्त रक्त सँचार न होना।
  3. शरीर में गंभीर रूप से इन्फेक्शन (सेप्सिस) होना।
  4. रक्त कोशिकाओं का फैल जाना, ऐसा अक्सर ऐनाफलेक्सिस के कारण होता है।

 

शॉक के प्रकार 

  • हाइपोवोलेमिक (तरल पदार्थ का कम होना) – शरीर में तरल पदार्थ जैसे रक्त, पानी इत्यादि का कम होना
  • कार्डिओजेनिक (ह्रदय का ठीक रूप से रक्त संचार न कर पाना) – ह्रदय का पर्याप्त मात्रा में रक्त न भेजने के कारण होने वाला शॉक ह्रदय तथा रक्तवाहिकाओं (कार्डिओजेनिक) शॉक कहलाता है।
  • वेसोजेनिक (रक्त कोशिकाओं में फ़ेलाव आना)  – शरीर में रक्त प्रवाह करने वाली धमणी व् अन्य कोशिकाओं में फैलाव आने से रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में गिरावट आना।

 

चिन्ह व् लक्षण 

  • मरीज़ की प्रतिक्रिया – उतावलापन, बेचैनी तथा घबराहट होना 
  • हृदय कि गति का बढ़ जाना
  • श्वास लेवे कि गति का बढ़ जाना 
  • त्वचा का रंग, तापमान, नमी – पीला, ठंडा व् चिपचिपा होना 
  • मरीज़ का जी मचला सकता है, हो सकता है कि उलटी कर दे
  • थकान की शिकायत होना व् प्यास लगना 

 

गम्भीर स्तिथि में चिन्ह व् लक्षण 

  • जवाब देने कि क्षमता का कम होना 
  • मरीज़ जगा हो व् गुमराह (डिसोरिएन्टेड) हो या बेहोश हो सकता है 
  • ह्रदय कि गति बड़ी हुई – कलाइयों कि धमनियां कमज़ोर हो एवम धीरे धीरे गुम हो सकती है  
  • श्वास कि गति – बढ़ती जाती है तथा उथली (शैलो – कम गहरी) होती जाती है 
  • त्वचा का रंग, तापमान, नमी – पीला, ठंडा व् चिपचिपा हो जाना 

 

उपचार में ध्यान रखने योग्य 

  • स्वयं व मरीज़ को शांत रखें
  • शॉक के कारण का उपचार करें 
  • मरीज़ के शरीर को गरम रखें 
  • मरीज़ को लिटाएं तथा उसके पैरो को १०-१२ इंच उठा कर रखें (यदि सिर पर चोट लगी हो तो ऐसा न करें)
  • अगर मरीज़ गरम तरल पदार्थ ले सकता है तो उसे बैठा कर दें। अगर श्वास की नली बंद होने का खतरा हो तो कुछ खाने या पीने को न दें।
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  • याद रखें शॉक को अनदेखा कर देना काफ़ी नुक़सानदायक हो सकता है। शॉक का जल्द से जल्द उपचार करना बेहद आवश्यक है।